जानें ‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान कब और क्यों बना
‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान है, जिसे रविन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाली भाषा में लिखा था. यह हमारे देश के इतिहास और परंपरा को दर्शाता है. यह सभी देशवासियों को एकजुट करता है और एक अलग पहचान देता है. 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा द्वारा‘जन गण मन’ के हिन्दी संस्करण को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था. गणतंत्र दिवस एवं स्वतंत्रा दिवस के अवसर पर देश के सभी स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालयों में एवं अब तो सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाता है. राष्ट्रगान के गायन की अवधि 52 सेकेण्ड है, परन्तु कुछ अवसरों पर इसको संक्षिप्त में भी गाया जाता है, जिसमें केवल 20 सेकेण्ड ही लगते हैं क्योंकि उस समय राष्ट्रगान की पहली और अंतिम पंक्तियों को ही गाया जाता है. इस लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि सर्वप्रथम राष्ट्रगान कब गाया गया था और इसको गाने के पीछे क्या कारण था.
‘जन गण मन’ कब गाया गया था
क्या आप जानते है कि सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करती थी. 1905 में जब बंगाल विभाजन हुआ तो आम जनता एवं आंदोलनकारी बंग-भंग आंदोलन का विरोध करने लगे, तब अंग्रेजो ने कलकत्ता के बदले दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया. धीरे-धीरे भारतीयों के दिलों में स्वतंत्रता की भावना जागृत होने लगी थी और तभी कलकत्ता के एक कोने में एक गीत "जन गण मन अधिनायक जय हे" का जन्म हुआ जिसे तत्कालीन कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने बंगाली में एक कविता के रूप में लिखा था.
इस गीत को पहली बार 27 दिसंबर, 1911 को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन गाया गया था. टैगोर की भतीजी, सरला देवी चौधरानी ने कुछ स्कूली छात्रों के साथ इस गीत को अपनी आवाज़ दी थी और कांग्रेस अध्यक्ष बिशन नारायण दर, भूपेन्द्र नाथ बोस, अम्बिका चरण मजूमदार जैसे अन्य नेताओं के सामने गाया था.
‘जन गण मन’ कब गाया गया था
क्या आप जानते है कि सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करती थी. 1905 में जब बंगाल विभाजन हुआ तो आम जनता एवं आंदोलनकारी बंग-भंग आंदोलन का विरोध करने लगे, तब अंग्रेजो ने कलकत्ता के बदले दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया. धीरे-धीरे भारतीयों के दिलों में स्वतंत्रता की भावना जागृत होने लगी थी और तभी कलकत्ता के एक कोने में एक गीत "जन गण मन अधिनायक जय हे" का जन्म हुआ जिसे तत्कालीन कवि रविंद्रनाथ टैगोर ने बंगाली में एक कविता के रूप में लिखा था.
इस गीत को पहली बार 27 दिसंबर, 1911 को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन गाया गया था. टैगोर की भतीजी, सरला देवी चौधरानी ने कुछ स्कूली छात्रों के साथ इस गीत को अपनी आवाज़ दी थी और कांग्रेस अध्यक्ष बिशन नारायण दर, भूपेन्द्र नाथ बोस, अम्बिका चरण मजूमदार जैसे अन्य नेताओं के सामने गाया था.


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